Hindi Kavita – माँ | Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart – by Sadhna Jain

माँ is a Short Hindi Kavita about Maa (mother) written by Sadhna Jain. Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart

माँ is a Short Hindi Kavita about Maa (mother) written by Sadhna Jain. This Hindi Kavita is a Mother’s Day Special Kavita dedicated to all the Mother’s.



माँ
 
माँ-बेटे का रिश्ता खून का ही नही, भावनाओं का होता हैं ,
बेटे की हर इच्छा का, माँ के दिल को पता होता हैं ,
 
माँ उगुंली पकड़ती हैं, तो चलना सिखाती हैं ,
गोद में बैठा लें, तो ममता लुटाती हैं ,
सुखों की बारिश हो, या दुखों की धूप हों ,
ये तो ऐसा छाता हैं, हर तूफान से बचाती हैं ,
 
माँ और टेलिविजन में कुछ फर्क नहीं हैं,
दोनों का रिमोट कन्टोल बेटे के हाथ में होता हैं ,
 
माँ तो वो दरवाजा होती हैं ,जिसका हर झरोखा
बेटे के दिल में खुलता हैं ,
 
पिता तो एक कुम्हार की तरह होता हैं ,
जो अन्दर से थपथपाता हैं ,
और चोट बाहर से करता हैं ,
पर माँ तो वो गीली मिट्टी होती हैं ,
जो हरदम सोंधी-सोंधी महक ही देती हैं ,
चाहे कहीं भी रहें, बेटे के लिए मंगल-कामना ही करती हैं ।
                                                                                 

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Hindi Kavita – मौत-एक सत्य | Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart – by Sadhna Jain

मौत-एक सत्य is a Short Hindi Kavita about Life written by Sadhna Jain. Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart

मौत-एक सत्य is a Short Hindi Kavita about Life written by Sadhna Jain.



मौत-एक सत्य

रात और दिन क्रम से बदले, ऋतुऐ आती जाती है,
जाने वाले फिर नही आते, केवल याद रुलाती है,
 
मौत का ताडंव पसरा हर और, हर घर मे इसका बसेरा है,
दबे पांव, बिन आहट आए, कोई घर न इसने छोडा है,
 
जन्म लेने मे, प्राणी को जग मे, नौ महीने लग जाते है,
एक पल मे ही प्रलय हो जाती, जब छोड जगत को जाते है,
 
अरिहन्त नाम सत्य है, राम नाम सत्य है,
ये पंक्तियाँ कानो मे अब गूंज उठी,
वो जीवन भी तो एक सत्य ही था,
जिसे कन्धे पर उठाए आज मौत चली,
 
अनुपम रचना मानव प्रभु की, या मात्र एक खिलौना है,
चाबी इसमे भरी जहाँ तक, खिलौना वही तक केवल चलना है,
मुट्ठी भर राख, है सत्य इस जीवन का,ये सच नही बदल सकता,
पांच तत्वो से बना था ये तन, पंच-तत्वो मे जा मिलना है,
 
अट्टू सत्य जीवन का मौत, नंगी तलवार सी हर सिर पर खडी है मौत,
पर
शुभ कर्मो से हारी है मौत, दया-धर्म के कदमो मे, झुक-झुक जाती देखी ये मौत,
    
                       

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Hindi Kavita – संयम | Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart – by Sadhna Jain

संयम is a Short Hindi Kavita on Life written by Sadhna Jain. Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart

संयम is a Short Hindi Kavita on Life written by Sadhna Jain.



संयम

अंहिसा यदि चाहो जग मे, तो संयम को अपना लो तुम,
शांत तन और शांत मन से, स्वस्थ समाज की नींव धरो,

अहंकार और स्वार्थ बढे, तो विवेक कही छिप जाता है,
पर संयमधारी प्राणी का जीवन, मदमस्त पवन का झोंका है,
 
अपराध और भ्रष्टाचार की दीमक, आज जीवन बगिया को निगल रही,
बाहरी जगत के आकर्षण की, तेरी आंखो पर, अब भी क्यो पट्टी बंधी,
 
ज्यों-ज्यों जीवन के पथ पर, प्राणी तेरे कदम बढे, सुख-दुख भी घटते-बढते है,
अज्ञानी ये देख के रोए, ज्ञानी इसे प्रभु की लीला कहे,
 
सत्ता और अधिकार शब्द, सदैव ही संघषो के निमित्त बने,
जीवन-पथ पर वही बढा है, संयम, तपस्या, साधना जिनके संग चले,
 
नदी सरीखा मानव जीवन, एक दिन प्रभु सागर मे मिल जाएगा,
छल-कपट का मैल भरा इसमे, संयम की छलनी से ही छन पाऐगा,
 
                                                                                          

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कविता हिंदी में:संस्कार | Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart – by Sadhna Jain

संस्कार is a Short Hindi Poem written by Sadhna Jain. Kaavyalaya – Poems that Touch the Heart

संस्कार is a Short Hindi Poem written by Sadhna Jain.



संस्कार
 
 
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
माना नए अंकुर हो, इस शाख के ,
पर जड़ों को अपनी न हिला दीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
शादी का जिक्र आते ही, हमारी बेटियाँ शरमा जाती थी कभी
आज, पिता को अपने पति का फोटो न थमा दीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
बेटे की तरक्की, बुढढे पिता का गौरव बढाती थी, कभी
आज उस पिता के मरने की न दुआ कीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
खुशियाँ पड़ोसी की भी, अपनी सी लगती थी, कभी
आज दिल के झरोखों को न बंद कीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
अनहोनी घट जाए कहीं तो ऑखें भर आती थी ,
आज अखबार की एक खबर की तरह सुनकर ,
पन्ना न पलट दीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
माँ का फटा ऑचल भी, पसीना सुखाता था कभी ,
आज उसी माँ को बोझ का नाम मत दीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
कम्पयूटर और मोबाइल, माना ज्ञान के भंडार है ,
पर इस ज्ञान के खजाने से अशलीलता न परोस दीजिए ,
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
आज हक तो हमें याद है, पर कर्तव्य अपना भूल गये ,
संतान बनकर प्यार तो खूब लूटा, पर आदर करना भूल गए ,
 
स्वस्थ समाज की नींव हमारे संस्कारों में छिपी हैं ,
हर रिश्ते की मर्यादा इनमे बताई गई हैं ,
 
श्री राम को प्रभु राम बनाया इन्होंने
दुखों के भंवर में जब भी प्राणी फँसा हैं, तब हाथ बढा कर निकाला इन्होंने,
इसलिए
संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
 
                            

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