बचपन is a Short Hindi Poem written by Sadhna Jain.
जीवन का कटु सत्य मेरा-मेरा मत कर प्राणी, कुछ तेरा ना मेरा है, कल था किसी का, वो आज है तेरा, कल सौप इसे चल देना है, खुशियो से यदि भरा हो जीवन, तो ज्ञानी इसको तजते क्यो, समय के हाथ मे हम सब कठपुतली, पल-पल नाचे टुमक-टू, जीवन के चौराहे पर, डगर प्रभु की दिखे नही, सत्कमों का जहाँ गिरे पसीना, महापुरुषो के चरण वही, जीवन संध्या हो न जाए, प्रभु के चरणो मे अलख जगा, माया-मोह के तोड के ताले, निज स्वरुप मे रमता जा, क्षीण हो रही निशदिन काया, जिव्हा फिर भी क्यो कटु वचन कहे, अपनी मर्जी से तू जिया उम्र-भर, अब अपनो के पथ मे क्यो कांटे बुने, मुट्ठी बांध आया तू जग मे, हाथ पसारे जाना है, तिनका भी वहाँ संग न जाए, फिर धन- दौलत का क्यो मान करे, दया-धर्म ही सच्चे साथी, संग-संग ये ही जाऐगे, फूल सरीखी कोमल जिनकी वाणी, उनके जीवन-पथ को महका देगे, ये राहें सरल बना देगे, ये राहे सरल बना देगे,
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