बेटी is a Short Hindi Poem written by Sadhna Jain.
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बेटी बेटी एक पुष्प की तरह होती है, खिलती है बाबुल के आंगन मे, महका पिया का घर देती है, वो बचपन के खेल, वो गुडियो का मेल, होली के रंग, दीवाली के बम, भाईयो से लडना, अकडना, मटकना, न जाने कहाँ खो जाता है, जब माँ के आंचल का साया, पिया की चुनर मे बदल जाता है, आंखे देखो, अब इसकी शर्म से झुकी जाती है, सिन्दूर की लाली, गालों पर छाई जाती है, नए रिश्तो के धागों से, आशियाना बुन रही है, मेरी नन्ही सी गुडिया, न जाने कब सयानी हो चली है, सारे जग की खुशियाँ हो न्यौछावर तुम पर, हर दिल मे रहो तुम, एक मीठा सा अहसास बनकर, हर रूप को नारी के, तुम साकार करना, कभी अल्हड नदी, कभी शांत समुन्दर बन चलना
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