संस्कार is a Short Hindi Poem written by Sadhna Jain.
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संस्कार संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , माना नए अंकुर हो, इस शाख के , पर जड़ों को अपनी न हिला दीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , शादी का जिक्र आते ही, हमारी बेटियाँ शरमा जाती थी कभी आज, पिता को अपने पति का फोटो न थमा दीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , बेटे की तरक्की, बुढढे पिता का गौरव बढाती थी, कभी आज उस पिता के मरने की न दुआ कीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , खुशियाँ पड़ोसी की भी, अपनी सी लगती थी, कभी आज दिल के झरोखों को न बंद कीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , अनहोनी घट जाए कहीं तो ऑखें भर आती थी , आज अखबार की एक खबर की तरह सुनकर , पन्ना न पलट दीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , माँ का फटा ऑचल भी, पसीना सुखाता था कभी , आज उसी माँ को बोझ का नाम मत दीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , कम्पयूटर और मोबाइल, माना ज्ञान के भंडार है , पर इस ज्ञान के खजाने से अशलीलता न परोस दीजिए , संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए , आज हक तो हमें याद है, पर कर्तव्य अपना भूल गये , संतान बनकर प्यार तो खूब लूटा, पर आदर करना भूल गए , स्वस्थ समाज की नींव हमारे संस्कारों में छिपी हैं , हर रिश्ते की मर्यादा इनमे बताई गई हैं , श्री राम को प्रभु राम बनाया इन्होंने दुखों के भंवर में जब भी प्राणी फँसा हैं, तब हाथ बढा कर निकाला इन्होंने, इसलिए संस्कारों को अपने यूँ न भुला दीजिए ,
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